बाबरी मस्जिद से पहले भी वहां मस्जिद ही थी, हिन्दू इतिहासकार का खुलासा

CITY TIMES
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राम जन्मभूमि -बाबरी मस्जिद विवाद, काफी समय से इलाहाबाद उच्च न्यायालय (लखनऊ पीठ) के सामने विचाराधीन है। उच्च न्यायालय फिलहाल इस प्रश्न पर साक्ष्यों की सुनवाई कर रहा है कि 1528 में बाबरी मस्जिद के बनाए जाने से पहले, वहां कोई हिंदू मंदिर था या नहीं? हालांकि दोनों पक्षों के गवाहों से काफी मात्रा में साक्ष्य दर्ज कराए जा चुके थे, उच्च न्यायालय ने यह तय किया कि विवादित स्थल पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से खुदाई कराई जाए। इस खुदाई के लिए आदेश जारी करने से पहले अदालत ने, संबंधित स्थल का भू-भौतिकी सर्वेक्षण भी कराया था। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के ही आमंत्रण पर, तोजो विकास इंटरनेशनल प्राइवेट लि. नामक कंपनी ने, जिसका कार्यालय नई दिल्ली में कालकाजी में है, रिमोट सेसिंग की पद्धति से भूगर्भ सर्वेक्षण किया था।

उक्त सर्वेक्षण की रिपोर्ट में संबंधित स्थल पर सतह के नीचे भूमिगत असंगतियां दर्ज की गयीं थीं। इस रिपोर्ट के ही अंशों में से असंगंतियां, “प्राचीन या समकालीन निर्माणों जैसे खंभों, नींव की दीवारों, संबंधित स्थल के बड़े हिस्स् में फैले पत्थर के फर्श से संबंद्ध“ हो सकती थीं।


आरंभिक मध्य काल में आबादी के साक्ष्य नहीं
जे-3 खाई में 10 मीटर से भी ज्यादा गहराई तक गहरी खुदाई की गई है। इससे पहले 1969-70 में ए. के. नारायण (बनारस हिंदू विश्वविद्यालय) द्वारा और बी. बी. लाल (इंडियन इंस्टिट्यूट आफ एडवांस्ट स्टडीज़, शिमला) तथा के. वी. सुंदरराजन (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) द्वारा की गई खुदाइयों में उजागर किए गए स्स्कृतियों के क्रम की ही, मौजूदा खुदाई ने पुष्टि है। इसके हिसाब से अयोध्या में रामजन्मभूमि कहलाने वाले स्थल को सबसे पहले 600 ईस्वीपूर्व आबाद किया गया था। लेकिन, इसके बाद, कुषाण काल के आखिरी दौर में या गुप्त काल में, पांचवी सदी ईस्वी तक यह इलाका उजड़ चुका था।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के दल ने 12 मार्च 2003 से वहां खुदाई का काम शुरू किया। मैं 10 से 12 जून तक खुदाई स्थल पर था। टीले के एक छोटे से हिस्से को छोड़कर जिस पर रामलला का अस्थायी मंदिर बना हुआ है, 80 मीटर गुणा 60 मीटर के विवादित क्षेत्र में भारतीय पुरातत्व सर्वे के विशेषज्ञों ने विस्तृत रूप से खुदाई की है।



इस तरह, तोजो विकास कंपनी के भूगर्भ सर्वेक्षण की रिपोर्ट के ही आधार पर, उच्च न्यायालय ने 5 मार्च 2003 के अपने आदेश जारी किए थे, जिनमें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से कहा गया था कि विवादित स्थल पर खुदाई करे और इसका पता लगाए कि वहां कोई मंदिर बना हुआ था या नहीं?

सल्तनत काल की मस्जिद
खुदाई में सामने आए सबसे महत्वपूर्ण मध्ययुगीन निर्माण, वास्तव में विभिन्न कालखंडों की दो मस्जिदों के अवशेष हैं। ये अवशेष टीले के तो उपरले संस्तरों पर हैं, लेकिन बाबरी मस्जिद के मलबे के नीचे हैं, जबकि मलबे के ऊपर अस्थायी मंदिर खड़ा हुआ है।



मौजूदा खुदाई में आरंभिक मध्यकाल (600 ईस्वीपूर्व से 1200 ईस्वी) से संबद्ध बसावट का कोई संस्तर नहीं मिला है। मस्जिद की बाउंड्री वाल के नजदीक खुदाई में बी. बी. लाल ने जो चूने के फर्श ताथा `स्तंभ आधार` खोजे थे (इंडियन आर्कियोलजी – एक रिव्यू, 1976-77) और ग्यारहवीं सदी के बिताए थे, अब स्पष्ट हो गया है कि सल्तनत काल (13 वीं सदी ईस्वी) पहले के नहीं हो सकते हैं। जो भी नक्काशीदार काले पत्थर के खंभों, दरवाजे के कब्जे व अन्य नक्काशीदार पत्थर, विवादित स्थल पर या उसके निकट मिले थे, जिसके संबंध में हिस्टोरियन्स फोरम ने न्यू आर्कियोलोजिकल डिस्कवरीज (1992) में बताया था या जिनके मस्जिद के मलबे से मिलने के बारे में बताया गया था, उनका बाबरी मस्जिद के नीचे के संस्तरों से कोई भूसंस्तरीय संबंध नहीं बनता है। मौजूदा खुदाई में एफ-3 खाई में मिला काले पत्थर का खंभा, मस्जिद के मलबे से आया है। जे-3 खाई में मिला आलेखदार पत्थर, गढ़े के भरत में कंकड़ियों के साथ औंधा पड़ा पाया गया है। उसकी लिपि भी उन्नीसवीं सदी से पुरानी नहीं है।



बाबरी मस्जिद
बाबरी मस्जिद से पहले की मस्जिद के सबसे अच्छे साक्ष्य खाई संख्याः डी-6, ई-6, एफ-6 तथा उत्तर व दक्षिण की कुछ और खाइयों में मिले हैं। उसकी पश्चिमी दीवार, बाहरी दीवार (बाउंड्री वाल) का भी काम करती होंगी। उसकी नींव में कुछ नक्काशीदार पत्थर लगे थे, जो कहीं अन्य पुराने निर्माणों से रहे होंगे। इसकी ऊपर की दीवारें सांचे की (मोल्टेड) ईंटों से बनी हैं, जो आस-पास में किन्हीं पुराने मध्यकालीन निर्माणों के मलबे से आयी होंगी। उपरोक्त खाइयों में एक हाल की दक्षिणी, पूर्वी तथा उत्तरी दीवारें देखी जा सकती हैं। दीवारों की अंदरूनी सतह पर चूने का पलस्तर है और ये दीवारें चूने और सुर्खी के फर्श से जुड़ती हैं, जो उत्खनन के करीब-करीब पूरे ही क्षेत्र में फैला हुआ है। इस फर्श के नीचे मिट्टी का भरत किया हुआ है, ताकि मस्जिद के फर्श को ऊपर उठाया जा सके। फर्श बनाने में चूने और सुर्खी के प्रयोग, दीवारों पर पलास्तर किया जाना और इन दीवारों पर बाबरी मस्जिद (निर्माण 1528 ईस्वी) की दीवारों का बनाया जाना, यह सब बाबरी मस्जिद से पहले के इस निर्माण के सल्तनत काल का होने को साबित करता है।



संबंधित मस्जिद पर जिस दूसरी मस्जिद के साक्ष्य मिले हैं, निर्विवाद रूप से बाबरी मस्जिद थी, जो पत्थरों से बनायी गई थी। इसेक दक्षिणी गुंबद की दीवारें, सत्लतनत काल की मस्जिद की ही निर्माण योजना का अनुसरण करती हैं। बाबरी मस्जिद की दीवारें, जहां-कहीं भी बची रह गयी हैं, चूने के पलस्तर के साक्ष्य पेश करती हैं। इस मस्जिद का फर्श भी, चूने तथा सुर्खी का बना है। पहले वाला यानी सल्तनत काल की मस्जिद का फर्श, अब मिट्टी के भरत के नीचे दब गया है, जो शायद मुगलकालीन मस्जिद को ऊपर उठाने के लिए किया गया होगा। मुगलकालीन मस्जिद का फर्श भी खूब लंबा-चौड़ा है, करीब-करीब सल्तनत काल की मस्जिद जितना ही। बाबरी मस्जिद से जुड़ा एक ओर महत्वपूर्ण निर्माण है, मस्जिद के दक्षिण-पूर्व में बना कंकड़-पत्थर का (पानी का) हौज। नौ-दस फुट की ऊंचाई तक, पत्थर के हरेक रद्दे पर चूने तथा सुर्खी का गारा फैलाया गया था।

हौज की ऊपरी सतह के बाबरी मस्जिद के फर्श से जुड़े होने से, बाबरी मस्जिद (प्रथम चरण) के साथ इसके संबद्ध होने का पता चलता है।

-डा. सूरजभान का यह लेख सहमत मुक्तनाद, अप्रैल-जून 2003 अंक में छपा था!



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