एक और बड़ा खुलासा : "VVPAT में लगायी जा सकती है सेंध"

CITY TIMES
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VVPAT में पलक झपकते ही ऐसा सॉफ्टवेअर ड़ाला जा सकता है कि बटन दबाने पर 'बीप' की आवाज़ हो, सही लाइट भी जले, पेपर प्रिंट होकर दिखे तो सही लेकिन EVM की मेमोरी चिप (EPROM IC etc.) में वोट सिर्फ़ किसी पूर्वनिश्चित पार्टी, मसलन भाजपा का ही दर्ज हो. इन सॉफ्टवेयर की ख़ासियत ये होती है कि इन्हें इस तरह प्रोग्राम किया जाता है कि टेस्टिंग के वक़्त 100-500 वोट्स तक या सुबह 10 बजे तक ये बिल्कुल सही काम करे और एक निश्चित घड़ी के समय अनुसार Clock Timer चिप (555 timer IC etc.) से गड़बड़ी दोपहर 12 या 2 बजे के बाद सेट कर चालू हो और एक तरफ़ा (पूर्वनिश्चित पार्टी को) वोट मेमोरी में जमा करे, दूसरा तरीका होता है, कि निश्चित संख्या के वोट पड़ने पर उसे परसेंटेज के हिसाब से फाइनल के पहले मेमोरी में एक तरफा (किसी पूर्वनिश्चित पार्टी को) वोट पल्टा कर स्टॉप हो जाये.



अब जब तक VVPAT से प्रिंट की गयी पर्चियों को गिनकर EVM की मेमोरी से क्रॉस चेक नही कराया जाता, ये सुनिश्चित किया ही नही जा सकता कि EVM मशीन की मेमोरी में जमा वोट और हमारे द्वारा वेरीफाई की गई VVPAT की पर्चियाँ समान संख्या में हैं. खबरों अनुसार, यहाँ सबसे गंभीर मामला यह है कि चुनाव आयोग ने VVPAT लगाने से पहले ही उसकी पर्चियों को गिनकर क्रॉस वेरिफाई करने से सख़्त इनकार कर दिया है.



यदि VVPAT की पर्चियों को ही गिनकर वोट सुनिश्चित होता होगा तो भाई प्रिंटर लगाकर पर्ची छपाकर गिनने से तो सस्ता है ठप्पा मारकर बैलट पेपर गिनना. चुनाव आयोग ह्यूमन लेबर बचाने के नाम पर EVM की प्रोग्रामेबल मेमोरी इस्तेमाल करने की दलील दे रही है ताकि वोट गिनने में समय और पैसा बचे, लेकिन लोकतंत्र को ख़तरे में ड़ालकर! अरे ईश्वर मान्य चुनाव आयोग जिस देश में 130 करोड़ लोग हों, वहाँ वोट गिनने वाली लेबर EVM और VVPAT से तो सस्ती ही पड़ेगी और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को आप सस्ती तकनीक से गिनकर क्यों भारत को शर्मिंदा कर रहे हैं. स्वच्छ भारत टैक्स की तरह बैलट पेपर टैक्स लगा दो, हँसते हँसते दे देंगे, लेक़िन हम लोकतंत्र पर आँच नही आने देंगे.



अब आपको यह समझने में देर नही लगनी चाहिए कि क्यों मोदी सरकार ने अब जाकर जब चुनाव आयोग ने VVPAT की पर्चियों को गिनने से ही इनकार कर दिया है, तब कहीं लगभग 3000 करोड़ क्यों दिए हैं VVPAT लगाने के लिए. जब रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया एक स्वायत्त संस्था होकर उसका गवर्नर बोल सकता है कि नोट बंदी का निर्णय रिज़र्व बैंक का नही, मोदी सरकार के दबाव का था तो चुनाव आयोग स्वायत्त संस्था होकर किसी दबाव में काम नही कर रही, इसकी क्या ग्यारंटी है?



बैलट से चुनाव प्रक्रिया में आपको वोट डालते वक़्त पता होता है कि वोट किसे पड़ा, बैलट बॉक्सेस के स्ट्रांग रूम की निगरानी पब्लिकली होती है, और बैलट गिनकर ये सुनिश्चित किया जा सकता है कि जो ठप्पा पड़ा, वही गिना जा रहा है, EVM और VVPAT से आपका लोकतंत्र वो भीष्म पितामाह बन कर रह जायेगा, जो ज़िंदा तो हो, लेकिन काम का न हो."
ख़ूब शेयर करें और लोकतंत्र बचाने के लिए लोगों को आव्हान करें, यदि कोई जानकारी चाहिये हो तो संपर्क करें इनबॉक्स में.
― राहुल शेंडे.
इंडिया फ़ॉर डेमोक्रेसी कैंपेन.

Nykaa CPV

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