मारवाड़ (वर्तमान जोधपुर)राज्यान्तर्गत बाड़मेर के निकट वर्तमान पाकिस्तान में स्थित मीरपुर खास किसी समय एक विकसित और खुशहाल बौद्ध क्षेत्र था। इसे थार का दरवाजा भी कहा जाता है। पूरे क्षेत्र में बौद्ध अवशेष बिखरे पड़े है। मीरपुर खास का स्तूप उन में से एक है। यह एक बड़ा स्तूप था। जो अब नहीं है। जोधपुर से हैदराबाद जाने वाले रेल मार्ग पर बाड़मेर के बाद मीरपुर खास स्टेशन आता है। जोधपुर और मीरपुर खास के बीच बाड़मेर है। जोधपुर, जैसलमेर और बाड़मेर आदि क्षेत्रों के लोग इधर से उधर आते-जाते रहे है। मीरपुर खास के भग्नावशेषो से स्पष्ट है कि किसी समय यह थार या थल में बौद्ध धर्म का बड़ा केंद्र था।
अशोक के समय और उसके बाद तक यह व्यापारिक मार्ग में आने वाला एक बड़ा केंद्र था। 【see the Silk-Ways】भिक्षु उपगुप्त भी यहाँ विहरे थे। ह्वेनसांग ने इस स्तूप का उल्लेख किया है। सिन्ध का राजा चच भी यहाँ यात्रा में आया था। वह ब्राह्मण धर्म को मानता था। उसका भाई चंद्र बौद्ध भिक्क्षु था। वह सिन्ध का राजा भी रहा।
इस स्तूप को गिब्स ने सन् 1859 में ने देखा। जैक्शन ने पहली बार यहाँ खुदाई की। सन् 1909 में हेनरी कुसेन्स वहां गया, उसने उजाड़ हुए इस क्षेत्र को देखा। उसी के द्वारा लिए गए कुछ फ़ोटो-प्लेट यहाँ दी गयी है। जब वहां रेलवे का काम चला, तब उसके पत्थर और ईंटे रेलवे के निर्माण में काम लेने पर इस स्तूप की जानकारी अंग्रेजों को मिली। उसके पत्थर और ईंटो को ले जाकर लोग अपने घर बनाने के काम में लेते रहे।। लोगो ने चारों ओर की परकोटा दिवार नष्ट कर ली। स्तूप को भी नष्ट कर दिया गया। कुछ अवशेष बचे है। डॉ मोतीचन्द्र ने इस मार्ग पर पुराने समय में मेघों का आधिपत्य होना लिखा है, वर्तमान में इस मार्ग पर बसी मेघ बस्तियों से भी यह प्रमाणित है।
आजादी से पहले तक मीरपुर खास इन जातियों के लोगों का आस्था केंद्र रहा है।
सम्भवतः ASI की टीम ने भी (भंडारकर आदि ने)1917 में इसका अवलोकन किया था। उसका जिक्र मैंने एक पोस्ट में किया है। बाकि फिर किसी पोस्ट में, अभी आप ये चित्र देखें और इस क्षेत्र में पुराने समय में बौद्ध धर्म की उपस्थिति का अहसास करें। जिस जगह स्तूप है, उसे कोह-जो-दड़ो कहा जाता है। मीरपुर खास की स्थापना 1806 में हुई। यहां के आम "सिंधरी" के नाम से प्रसिद्ध है. So it is also called 'Mango city.'
ताराराम गौतम, जोधपुर
सम्भवतः ASI की टीम ने भी (भंडारकर आदि ने)1917 में इसका अवलोकन किया था। उसका जिक्र मैंने एक पोस्ट में किया है। बाकि फिर किसी पोस्ट में, अभी आप ये चित्र देखें और इस क्षेत्र में पुराने समय में बौद्ध धर्म की उपस्थिति का अहसास करें। जिस जगह स्तूप है, उसे कोह-जो-दड़ो कहा जाता है। मीरपुर खास की स्थापना 1806 में हुई। यहां के आम "सिंधरी" के नाम से प्रसिद्ध है. So it is also called 'Mango city.'
ताराराम गौतम, जोधपुर
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