हिंदुस्तान में जिस तरह से जातिवाद ने घर कर लिया है उसे देखकर ये कहना गलत नहीं होगा कि ये देश इंसानों का नहीं जातियों का देश है. यहां जानवरों और जातियों की ही पहचान ज्यादा है बाकी इंसानों का क्या है वो तो बस दोयम दर्जे के होते जा रहे हैं. हिंदुस्तान में न जाने कितने ऐसे किस्से मिल जाएंगे जो सोचने पर मजबूर कर देते हैं कि हिंदुस्तान में जाति के क्या मायने हैं. हिंदू वर्ण व्यावस्थाक में जातिवाद का पुराना इतिहास रहा है, लेकिन मुसलमानों में भी ये कम नहीं है. इसकी चर्चा भले न हो, लेकिन मुजफ्फरपुर के एक वाकये ने तो इसे सबके सामने उजागर कर दिया है.
मुजफ्फरपुर के एक गांव दामोदरपुर टोला में एक सड़क के बीच दीवार खड़ी कर दी गई है. इस गांव को मुसलमानों का गांव कहा जाता है क्योंकि इस गांव में करीब 70 मुस्लिम परिवार रहते हैं. दामोदरपुर टोला में शेख और अंसारी (दो मुस्लिम जातियां) रहती हैं और एक ही रोड का इस्तेमाल करते-करते उन्होंने इस रोड को बीच में से बांट दिया है ताकि न ही ऊंची जाति के मुस्लिम नीची जाती के साथ जा सकें और न ही किसी और को कोई परेशानी हो.
मुजफ्फरपुर के एक गांव दामोदरपुर टोला में एक सड़क के बीच दीवार खड़ी कर दी गई है. इस गांव को मुसलमानों का गांव कहा जाता है क्योंकि इस गांव में करीब 70 मुस्लिम परिवार रहते हैं. दामोदरपुर टोला में शेख और अंसारी (दो मुस्लिम जातियां) रहती हैं और एक ही रोड का इस्तेमाल करते-करते उन्होंने इस रोड को बीच में से बांट दिया है ताकि न ही ऊंची जाति के मुस्लिम नीची जाती के साथ जा सकें और न ही किसी और को कोई परेशानी हो.
रोड का आधा हिस्सा शेखों का है और बाकी आधा है अंसारियों का. एक तो गांव की सड़क ऊपर से अब ये इतनी संकरी हो गई है कि लोग आसानी से गाड़ियां लेकर भी नहीं जा सकते. ये दीवार हाल ही में बनाई गई है. 18 नवंबर को एक अंसारी परिवार के घर शादी थी और वहीं किसी बात को लेकर अंसारी और शेख परिवारों में झड़प हो गई. एक झड़प में एक के बाद एक लोग जुड़ते चले गए और मामले ने तूल पकड़ लिया.
इस मामले का हल ये निकाला गया कि सड़क के बीच में एक दीवार बना दी जाए जो दोनों गुटों को एक दूसरे से अलग कर दे. इंडिया टुडे के एक रिपोर्टर से बात करते वक्त स्थानीय निवासी नसीरुद्दीन अंसारी ने कहा कि, 'शेख उनके साथ सही बर्ताव नहीं करते और ये अच्छा है कि दीवार बना दी गई है क्योंकि हमें उनसे कोई लेना देना नहीं रखना.'
उसी जगह शेखों की तरफ से मोहम्मद सलीम ने बताया कि , 'ये बेहद गलत है और अंसारी लोग आपे से बाहर हो गए हैं. जो दीवार बनाई गई है वो हमें और अंसारियों की तरफ बने मस्जिद को भी अलग कर देती है. हम वहां नमाज़ पढ़ने भी नहीं जा सकते. ये कितनी अजीब बात है कि जो लोग एक ही धर्म का पालन करते हैं, एक ही किताब को सही मानते हैं वो ही मस्जिद के बीच में दीवार खड़ी कर देंगे.'
क्या कभी सोचा है आपने कि वाकई ये समस्या इतनी बड़ी है कि एक ही धर्म के दो अलग-अलग गुटों में इतनी रांजिश हो गई कि अपने ईष्ठ से प्रार्थना करने जाने में भी दिक्कत खड़ी कर दी गई.
जिस तरह से हिंदू धर्म में जाति विभाजित है उसी तरह मुस्लिम धर्म भी विभाजित है और ये मूलत: तीन अलग-अलग जातियों को दिखाता है. ये हैं अशरफ, अजलाफ और अरजल (Ashraf, Ajlaf, Arzal). ये विभाजन खास तौर पर एशिया में ही पाया जाता है. हालांकि, ये और भी ज्यादा विभाजित है, लेकिन मूलत: ये ही हैं.
सबसे ऊपर हैं अशरफ जिन्हें अरब, फारस, तुर्की या अफ्गानी मूल का माना जाता है और माना जाता है कि ये पैगंबर के वंशज हैं. इसमें सैयदों को पैगंबर के वंशजों का माना जाता है. या फिर कुरैशी जिन्हें पैगंबर के कबीले वाला माना जाता है, इसी में आते हैं शेख जिन्हें पैगंबर के अनुयायियों का वंशज माना जाता है, फिर आते हैं पठान जिन्हें अफ्गानिस्तान का माना जाता है और अशरफ जाति में ही मुगलों की भी पीढ़ियां आती हैं जो ईरान और सेंट्रल एशिया से आए थे. अधिकतर अशरफ उलामा होते हैं (अधिकतर सैयद इस उपाधि के लिए जाते हैं.), या फिर किसी ऊंची जगह में होते हैं जैसे जमीनदार आदि. चूंकि अशरफ में शेख भी आते हैं इसीलिए उन्हें ऊंची जाति का माना जाता है.
दूसरा पायदान है अजलाफ का यानि छोटी जाति का. ये वो लोग हैं जो अपने पेशे से जाने जाते हैं. इनकी पहचान उन लोगों से होती है जिनके पूर्वज अन्य धर्मों से थे और अंत में इस्लाम से जुड़ गए थे. इस जाति के लोगों का पेशा अक्सर खेती, व्यापारी, बुनकार आदि का होता है (अंसानी और जुलाहा सरनेम वाले लोग). खास तौर पर गावों में कई अशराफ ये मानते हैं कि अजलाफ जाति भारतीय मुस्लिम समुदाय का हिस्सा नहीं है और उनसे दूरी बनाकर रखते हैं. यही हुआ शेख और अंसारियों की भिड़ंत में भी क्योंकि अंसारियों को शेख अपने से नीचे मानते है. सबसे नीचे आते हैं अरजल जो धोबी, चमार, हज्जाम जैसे काम करते हैं. उन्हें मुस्लिम समुदाय में अछूत का दर्जा दिया जाता है.
ये तो था जाति विभाजन जो शायद मुगलों के जमाने से भी पुराना है, लेकिन अगर आज की बात करें तो आज भी हिंदुस्तान के कई इलाकों में इस जाति प्रथा को इस तरह संदीजा होकर माना जाता है कि लगता है जैसे हम आगे नहीं बल्कि पीछे जा रहे हैं और इस तरह से चलता रहा तो शायद इसी धर्म और जाति के नाम पर हिंदुस्तान अपनी पहचान ही खो देगा.
Loading...