"हेलो, कौन बोल रहा है?" नेहा को आवाज बहुत सुनी सी लगी।
" गेस करो!" सामने से हल्की फुल्की आवाज।
"हम्ममम! नहीं मुश्किल है। आवाज तो सुनी है पर कहाँ, याद नहीं आ रहा।"नेहा हथियार डालते बोली।
"बहुत जल्दी हार मान जाती हो। तुम्हारी पुरानी आदत गई नहीं।" एक हल्की सी हँसी और वही रहस्य।
"आप ही बता दीजिए, मैं तो नहीं समझ पायी।"नेहा अधीर होते बोली। इस तरह के "guess who" वाले लाग-लपेट उसको उबाते है।
"कोई बात नहीं! अपने जन्मदिन की बधाई तो ले ले। फिर ले चलना स्कूल के सामने वाले cafeteria में।" उधर से एक खनकती हँसी।
"ओह! साक्षी तुम!!! कहाँ है?मेरा नंबर कहाँ से मिला? आज याद आई तुम्हें मेरी? तुम्हें याद रहा मेरा जन्मदिन!!" नेहा खुशी के अतिरेक में बही जा रही थी।
"शांत,शांत बालिके!! सब बताऊँगी। पहले बता पार्टी कहाँ दे रही है?" साक्षी की आवाज में भी खुशी झलक रही थी।
"घर आ जा। पार्टी भी हो जायेगी। मैं तुम्हें इसी नंबर पर अपना एड्रेस भेज देती हूँ।" नेहा खुश होती बोल उठी।
फोन रखते नेहा सोच रही थी कि इतने सालों का अबोला आज खत्म करके साक्षी ने वाकई उसे एक अनमोल तोहफा दिया है।
अंजू निगम, देहरादून