Moharram क्या है ? इसका यज़ीद औऱ हुसैन से क्या संबंध है ?
अव्वल तो मोहर्रम कोई त्योहार नही है। मोहर्रम इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना है।
इस महीने में 10 वी तारीख को हजरत हुसैन र त और उनके 72 साथियों को यज़ीद बिन मुआविया के लश्कर ने 10 दिन भूखे और प्यासे रखकर उस दिन शहीद किया।
ये बहोत ही दिलदहलाने वाला किस्सा है। यज़ीद जो था वो एक निर्दय और बेरहम खलीफा था। साथ मे वो चीज़ करता जो इस्लाम मे हराम है दारू पीना, गैर लड़कियों से ताल्लुक़ात।
हुसैन र त नबी के नवासे थे। यज़ीद को समजाने के लिए सही बात बताने के लिए कूफ़ा की और अपने साथियों के साथ रवाना हुए। रास्ते मे यज़ीद के लश्कर ने उन्हें और 72 साथियों को कैद कर लिया।
हुसैन र त ने कहा में कोई जंग के मकशद से आया नही हु। बहरहाल मुजे यज़ीद से मिलने दिया जाए। उसपर लश्कर ने उनकी बात न मानते हुए कैद किया और नदियों पर पहरा लगा दिया और खाना पीना पर पाबंदी लगा दी। यहां तक कि पानी की एक बूंद भी देने से मना किया गया। मासूम असगर जो 6 माह के थे पानी के बिना तड़प रहे थे। उन्हें तिरो के वार करके मार दिया गया। हैवानियत की हद पार कर चुके थे वो लोग।
9 मोहर्रम को हुसैन र त ने अपने साथियों को जमा किया। रात का वक़्त था। सारे दिए बुजा दिए गए। हुसैन र त ने कहा कल 10 मोहर्रम को जंग निश्चित है और उसमें शहादत भी निश्चित है। आप मेसे जो कोई वापस मक्का जाना चाहे जा सकता है। अल्लाह की कसम में बरोज कयामत में आपके लिए गवाही दूंगा। इसपर उनके साथियों ने जवाब दिया या हुसैन हम अगर वापस चले जाएं तो बरोज कयामत आपके नाना जान (रसुल्लूलाह) को क्या मुह दिखाएंगें। हम आपके साथ आये थे और साथ ही जायेंगे।
10 मोहर्रम को यज़ीद के लश्कर के साथ जंग हुई। उस जंग में यज़ीद को शिकस्त दिखाई देने लगी इसलिए उसने एक साथ हमला किया और हुसैन र त और उनके साथियों को जोहर की नमाज़ यानी दोपहर की नमाज़ के बाद शाहिद किया गया।
ये पूरा वाक़ेया आज भी मुसलमानों को रुला देता है। आज 1400 साल के बाद भी ये वाक़या इतना जिंदा है मानो कल ही हुआ हो।
इसलिए मोहर्रम को मनाया नही जाता उसे याद किया जाता है। शहीदों के लिए नमाज़ पढ़ी जाती है।