देश में ही क्या हम मुसलमान तो मक्का में भी मनाते है यौमे आजादी

CITY TIMES
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मक्का, 15 अगस्त। इस स्वतंत्रता दिवस की सबसे यादगार तस्वीरें सऊदी अरब से मिल रही हैं। इस बार का हज स्वतंत्रता दिवस के साथ पड़ रहा है और वतन से दूर बेकल हाजी सऊदी अरब में जहाँ मौजूद हैं वहीं यौमे आज़ादी मना रहे हैं। इस साल की सबसे दिल छू लेने वाली तस्वीर युवा हाजी शुजात अली क़ादरी की मिली है।

भारत के मुसलमान छात्रों के सबसे बड़े संगठन मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइज़ेशन के राष्ट्रीय महासचिव शुजात अली क़ादरी ने साथी हाजियों के साथ मक्का में काबा के सामने तिरंगा फहराया और आज़ादी का जश्न मनाया। आम तौर पर इस्लाम के सबसे पवित्र शहर मक्का के काबे के सामने तिरंगा फहराए जाने की कदाचित् यह पहला मामला है।

शुजात जब हज के लिए अपने गाँव कैसरगंज (बहराइच) उत्तर प्रदेश से निकल रहे थे तब भी उन्होंने तिरंगे को लहराकर अपना सफ़र शुरू किया था। तब भी उनकी इस अदा को मीडिया में काफी चर्चा मिली थी। मक्का से टेलीफ़ोन पर शुजात अली क़ादरी ने बताया कि जब काबा के सामने उन्होंने तिरंगा लहराया तो दुनिया भर के हर भाषा, रंग, नस्ल और क्षेत्र के लोग कौतूहल से उन्हें देख रहे थे।

कई लोगों ने उनसे इस बारे में बात की तो उन्होंने बताया कि आज भारत का स्वतंत्रता दिवस है और वह अपने मुल्क की सलामती और तरक्की के लिए दुआ करते हैं। कई विदेशी हाजियों ने उनकी दुआ में उनका साथ भी दिया। तिरंगे को देखकर कई भारतीय हाजी उनके क़रीब आ गए और अपने देश की तरक्की के लिए विशेष दुआ की।
अपने एक ऑडियो संदेश में बेहद भावुक होकर शुजात ने वॉट्सअप पर मित्रों से तस्वीर शेयर करते हुए कहा “आप




तस्वीर में काबे के सामने मुझे जिस तिरंगे को लहराते हुए देख रहे हैं, यह वही झंडा है जो मैंने कैसरगंज में लहराकर अपने हज के सफर की शुरूआत की थी।  हम अपने साथ तीन चीज़ें लाए हैं, क़ुरआन, तस्बीह (प्रार्थना की माला) और तिरंगा। अल्लाह हमारे मुल्क को अम्न में रखे, लोगों में मुहब्बत बनाए रखे और वतन को तरक्की दे। एक फ़क़ीर दिल और क्या दुआ कर सकता है?”

भारत के 22 राज्यों में 10 लाख सूफ़ी मुस्लिम छात्रों का सबसे बड़ा संगठन चलाने वाले शुजात अली क़ादरी मात्र 27 वर्ष के हैं और अपने देशप्रेमी नज़रिये के लिए जाने जाते हैं। “मुसलमानों के सामने तिरंगा और देशप्रेम के तीखे सवालों के दौर में आपका यह प्रयोग काफ़ी सकारात्मक है।” इसके जवाब में वह सिर्फ जिगर मुरादाबादी का शेर सुनाकर अपनी बात समाप्त कर लेते हैं “जिनका काम है अहले सियासत वो जानें, मेरा पैग़ाम है मुहब्बत जहाँ तक पहुँचे”।

शुजात अली क़ादरी ने बताया कि हज 2 सितम्बर को पूरा होगा और वापसी पर इसी तिरंगे के साथ वह लखनऊ हवाई अड्डे पर उतरेंगे। शुजात के साथ उनके माता पिता और गाँव के कई लोग भी हज पर गए हैं।



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