Sadaf Jafar लिखती हैं:-
जब तकलीफ़ में होती हूँ तो अक्सर सोचती हूँ कि माँ-पापा होते तो क्या कहते? क्या कहकर मुश्किल वक़्त काटने का हौसला देते???
आज मैंने अपने आसपास फैली हुई नफ़रत से परेशान होकर पूछा, क्या कहते, कैसे संभलते और संभालते मुझे, जिसे उन्होंने क़ौमी मुहब्बत के पालने में झुला कर पाला, और मेरे बच्चों को जिनको पापा तो नहीं देख पाए मगर माँ की परवरिश ने कोई कसर नहीं छोड़ी....क्या कहते वो....???
शायद पुराना दौर याद कर आँखे नम करके मुस्कुराते फिर कहते चाय कड़वी हो जाये तो क्या करोगी...और दूध और शक्कर ही न डालोगी...
खाने में नमक ज़्यादा होगा तो उसमें सादी ताज़ी दही मिलाकर खाने लायक ही न बनाओगी....
समाज में जब नफ़रत बेहद बढ़ गयी है तो नाराज़गी, नफ़रत से नहीं और ज़्यादा हिम्मत, सब्र और बहुत सारे प्यार से ही तो जीने लायक बना पाओगी!!!
हाँ यही कहते मेरे माँ-पापा....
जब तकलीफ़ में होती हूँ तो अक्सर सोचती हूँ कि माँ-पापा होते तो क्या कहते? क्या कहकर मुश्किल वक़्त काटने का हौसला देते???
आज मैंने अपने आसपास फैली हुई नफ़रत से परेशान होकर पूछा, क्या कहते, कैसे संभलते और संभालते मुझे, जिसे उन्होंने क़ौमी मुहब्बत के पालने में झुला कर पाला, और मेरे बच्चों को जिनको पापा तो नहीं देख पाए मगर माँ की परवरिश ने कोई कसर नहीं छोड़ी....क्या कहते वो....???
शायद पुराना दौर याद कर आँखे नम करके मुस्कुराते फिर कहते चाय कड़वी हो जाये तो क्या करोगी...और दूध और शक्कर ही न डालोगी...
खाने में नमक ज़्यादा होगा तो उसमें सादी ताज़ी दही मिलाकर खाने लायक ही न बनाओगी....
समाज में जब नफ़रत बेहद बढ़ गयी है तो नाराज़गी, नफ़रत से नहीं और ज़्यादा हिम्मत, सब्र और बहुत सारे प्यार से ही तो जीने लायक बना पाओगी!!!
हाँ यही कहते मेरे माँ-पापा....