जो धंधा करती हैं वो गर्भ से नहीं होतीं, धंधे वाली कभी बेहोश नहीं होती -पूनम मिर्ची

CITY TIMES
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दिमाग गिरवी रख आएँ हैं वो लोग जो बिजनौर ट्रेन पीड़िता को धंधे वाली कह रहे हैं
सिपाही बीमार लड़की को विकलांग आरक्षित कोच में ले जाता है....पहले से बैठे एकमात्र यात्री को बाहर कर देता है.....दरवाजे को भीतर से लौक करता है....बाहर बैठे लोगों को कुछ शक होता है.....भीड़ दस मिनट बाद दरवाजा पीटने लगती है....तो मिनट भर बाद दरवाजा खुलने पर लड़की बेहोश पड़ी थी और सिपाही की पैंट चढ़ा रहा था....
कुछ प्रश्न....
जो यात्री बैठा था उसे क्यों भगाया???
दरवाजा बंद क्यों किया???
एक मिनट बाद जब दरवाजा खोला तो लड़की के बदन पर कपड़े थे पर उसकी पैंट उतरी हुई क्यों थी???
क्या ऐसा नहीं हुआ कि वो एक मिनट उसने लड़की को कपड़े पहनाने में बिता दिया हो?????
वो क्या डॉ था जो चेकअप के लिए खुद लड़की के साथ बंद हो गया????
और सबसे बड़ी बात...पैंट उतार कर एक औरत के साथ कौन सा चेक अप होता है?????
बीमारी, डर और बलात्कार होने के ख़ौफ से लड़की बेहोश हो सकती है...पर वो तुरंत बाहर क्यों नहीं निकला??? 
क्यूँ नहीं ट्रेन में सफर कर रहे यात्रियों से किसी के डॉक्टर होने की बात पूछी????
तीन महीने के गर्भ के साथ धंधा नहीं होता Nishat Imran कम से कम एक औरत होने के नाते दूसरी औरत की तकलीफ को समझने की कोशिश करतीं!!!!


कुछ बातों को हमेशा मानवीय नज़र से देखना चाहिए....बिजनौर ट्रेन बलात्कार केस को हिन्दू मुसलमान न देखकर एक बीमार औरत पर ज़ोर ज़बरदस्ती और अकेली होने का फायदा उठाया उस दरिंदे सी आर पी एफ जवान ने.....पर केस हिन्दू मुसलमान बन गया जब आरोपी को जमाई बना कर आव-भगत की गई और पीडिता से परिवार वालों को भी मिलने नहीं दिया गया.....
डरा कर धमका कर कुछ भी संभव है....

और सुनो...जो धंधा करती हैं वो गर्भ से नहीं होतीं.....और जो गर्भ से होती हैं वे धंधा नहीं करतीं...(ज़रूरी बात...धंधे वाली कभी बेहोश नहीं होती)
पूनम_मिर्ची

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